गोवर्धन परिक्रमा Govardhan Parikrama – क्यों करते है भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा?

Parikrama

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गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Parikrama)

हिन्दू धार्मिक स्थानों में सबसे महान तीर्थ स्थल ब्रज धाम है जिसमे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा मुख्य है श्री गिरिराज जी की परिक्रमा बारे में  कहा जाता है की गोवर्धन परिक्रमा करने से चार धाम की परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। ब्रज की सबसे बड़ी परिक्रमा ब्रज 84 कोस की है। वैसे तो ब्रज के सभी स्थानो की परिक्रमा की जाती है जैसे –श्री मथुरा जी परीक्रमा, वृंदावन परिक्रमा, बरसाना परिक्रमा, नंदगाव परिक्रमा अदि। लेकिन इन में से ब्रज की दूसरी बड़ी परिक्रमा गोवर्धन परिक्रमा है। जो की 7 कोस  की है। जो मनुष्य चाहता ही की उस पर राधा रानी या भगवान श्री कृष्ण का प्रेम हमेशा बना रहे तो उस मनुष्य को श्री गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Parikrama) महाराज की अवश्य (जरूर ) करनी चाहिए तभी राधा रानी का प्रेम और दूसरे जन्म में मानव तन की प्राप्ति होती है। अब आपके मन में एक प्रश्न होगा की आखिर क्यों करते है गोवर्धन परिक्रमा क्या कारण है? आपके लिए श्री गिरिराज जी का एक प्रसिद्ध दोहा हे जैसे – सात रात और सात दिन, बरसै मेघ अघायजैसे ताते तबे पै, बूँद छन्न ह्वै जाय। लाज आपके हाथ है, ब्रज को लेउ बचाय,जो उपाय कछु ना करौ, पल में बज बहि जाय।। इस दोहे का उत्तर  आपको नीचे मिल जाएगा कृपया बने रहे लेख में –

इस में लेख मे आपको क्यों करते है भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा?, महत्व और परिक्रमा मार्ग की सम्पूर्ण जानकरी और नियमों के बारे में बताने वाला हूँ, लेख का पूरा पढ़ें :-

 श्री गिर्राज महाराज की परिक्रमा में राधा रानी के चरणो की चिन्ह और बहुत चिन्ह मौजूद है जिनके दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है यह परिक्रमा साल के 365 दिन चलती है इसलिए गोवर्धन में हमेशा करोडों श्रद्धालु आते है हिन्दू धर्म में आस्था है की परिक्रमा करने से मांगी हुई इच्छाएं पूरी हो जाती है।  अब आगे –

क्यों करते है भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा? 

Govardhan Parikrama

आखिर क्यों करते है भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा यह प्रश्न हर किसी मनुष्य के दिमाग में आता है। इस प्रश्न का सही उत्तर भागवत कृष्ण लीला में दिया गया है। एक बार देवताओं के राजा इंद्र अपने घमंड मे होने के कारण राजा इंद्र ने ब्रज मे वर्षा नहीं की इसी के चलते ब्रजवासी बहुत परेशान हो जाते है। परेशान ब्रजवासी अपने राजा नंद के पास जाते है। राजा नंद उन्हें देवताओं के राजा इंद्र की पूजा करने के लिए बोलते है। और सभी ब्रजवासी मिलकर पूरा करने की तयारी करते है तभी नन्हे कान्हा अपने बाबा नंद को इंद्र की पूजा न करने देते है और बोलते है। इंद्र से अच्छा तो हमारा गोवर्धन पर्वत है जो हमेशा हरा भरा रहता है। बाबा आप गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। सभी ब्रजवासी कान्ह की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करते। तभी यह देख इंद्र क्रोधित हो जाते है। इंद्र ब्रजवासिओं पर भयंकर आंधी तूफानी चलाना सुरु कर देते है। यह देख कान्हा   ब्रजवासिओं  को गोवर्धन पर्वत की शरण में ले जाते है। और इंद्र के घमंड को खतम करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की सबसे छोटी ऊँगली पर धारण कर लेते है। मेने आपके लिए एक दोहा पेश किया था अपने पढ़ा होगा उसका अर्थ ये है, सात रात और सात दिन, बरसै मेघ अघाय, जैसे ताते तबे पै, बूँद छन्न ह्वै जाय।।  लाज आपके हाथ है, ब्रज को लेउ बचाय,जो उपाय कछु ना करौ, पल में बज बहि जाय।। अर्थात इंद्र ब्रजवासिओं सात दिन और सात रात भारी वर्षा और अंधी तूफान चलाता रहा लेकिन श्री कृष्ण ने ब्रजवासिओं को कुछ भी न होने दिया। ऐसा करने से राजा इंद्र का क्रोध खत्म हो जाता है और इंद्र भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगते हैं। बस तभी से गोवर्धन पर्वत ब्रज की रक्षा कर रहे है। जो सुख ब्रजवासिओं को सात दिन सात रात कष्ट झेलते हुए निकाल दिए उसके बाद ब्रज मे सुख आया। इस लिए गोवर्धन परिक्रमा की 7 कोस करते है तो आपके जीवन में भी सुख की प्राप्ति होती है। गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Parikrama)  में दंडवत प्रणाम करने मात्र से ही आपका घमंड प्रेम में बदल जाता है बोलो गिरिराज महाराज की जय। इसलिए भक्त गोवर्धन परिक्रमा करते है। 

Govardhan Parikrama

नोट:- यहाँ आप वृंदावन परिक्रमा, बरसाना परिक्रमा के बारे मे जान सकते है। 

गोवर्धन परिक्रमा का महत्व: (Importance of Govardhan Parikrama)

मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार फल प्राप्ति होती है । कृष्ण के उस स्वरूप की पूजा की जाती है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठा रखा है। ऐसी भी मान्‍यता है कि जो मनुष्य इच्‍छा मन में रखकर इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है वह इच्‍छा जरूर पूरी होती है। गोवर्धन पूजा के दौरान गोवर्धन परिक्रमा का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष प्राप्त होता हैं। और जैसा की में पहले भी आपको बता चुका हूँ गोवर्धन परिक्रमा करने से आपका घमंड प्रेम में बदल जाता है। 

गोवर्धन परिक्रमा सही समय (Best Time For Govardhan Parikrama)

गोवर्धन परिक्रमा करने का ऐसा कोई निर्धारित समय नहीं है। जब भी आपके मन में भक्ति उतपन्न होती है या किसी भी खुशी या आपकी कोई मान्यता हो उस समय आप निसंकोच आप गोवर्धन परिक्रमा कर सकते है। गोवधन की परिक्रमा करने वालो श्रद्धालुओं की संख्या बहुत होती है। यहां देश विदेश से श्रद्धालु आकर भगवान श्री कृष्ण और राधा की कृपा पाते है। विशेष पर्वों पर यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या में बहुत भारी वृध्दि हो जाती है।  यहाँ के पर्व गुरु पूर्णिमा और गोवर्धन पूजा है। इन दोनों पर्वों पर श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में हो जाती है। यहाँ प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक मेले का आयोजन किया जाता है। परिक्रमा करते हुए परिक्रमार्थी राधे-राधे बोलते हैं, जिसके कारण यहाँ वातावरण राधामय हो जाता है। वैसे परिक्रमा करने को कोई निश्चित समय नहीं है। श्री गिर्राज महाराज की परिक्रमा किसी भी समय कर सकते है। 

गोवर्धन की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है? (Govardhan Parikrama in Kilometers)

गोवधन की परिक्रमा ( श्री  गिर्राज महाराज ) मुख्यत 21 की,मि है हालाँकि परिक्रमा को किसी भी बिंदु से चालू कर सकते है लेकिन ज्यादातर लोग दान घाटी से चालू करते है परिक्रमा में  5 से 6 घंटे का समय लगता है।

गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले दार्शनिक स्थान (Places and Temples Between Govardhan Parikrama)

गोवर्धन परिक्रमा में चलते हुए श्री राधा  रानी और भगवान् कृष्ण की लीलाओं से उत्प्नना लीलामयी स्थान मिलेंगे जिनमे से प्रमुख हैं- दान घाटी मंदिर, मानसी गंगा , अभय चक्रेस्वर मंदिर , सुरभी कुंड , कुशुम सरोवर, पूछरी का लोटा , जतीपुरा , राधा कुंड , गोविन्द कुंड , संकर्षण कुंड, और गौरीकुंड इन सभी की अपनी अलग अलग भूमिका है।  

चौरासी कोस के पूरे ब्रज मंडल में 250 सरोवर है जो श्री राधा रानी भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं से जुडी हुए हैं जब आप गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करेंगे परिक्रमा मार्ग में कई सरोवर में बने मंदिरो के दर्शन होंगे –

 सुरभी कुंड, संकर्षण कुंड, गौरीकुंड, गोविंद कुंड, राधा कुंड, उद्धव कुंडा, ललिता कुंड,

दान घाटी गोवर्धन  (Dan Ghati Govardhan)

दान घाटी श्री कृष्ण की लीलाओं में से एक लीला है माना जाता यहाँ श्री कृष्ण अपने सभी साथियों के साथ बैठकर दूध ढ़हि का दान लिया करते थे। भगवान दूध दही का दान इस लिए लेते थे क्योंकि ब्रज का मांखन दूध दही मथुरा कंस के यहाँ जा रहा था तभी कृष्ण ने देखा की कंस के सैनिक तो दूध दही खाके अभी बलवान हो जायेंगे और व्रज वाशी वलहीन हो जायेंगे इस लिए भगवान् ने अपने साथियों के साथ बैठ के अभी गोपियों दान लेने लगे ताकि कंस से युद्ध के समय ब्रजबाशी वलहीन न हों इस लिए श्री कृष्ण के द्वारा दान लिया गया था आज इस जगह को दान घाटी के नाम से जाना जाता है। आज भी यहाँ भगवान का दूध और दही से अभिषेक किया जाता है। 

मानसी गंगा गोवर्धन (Mansi Ganga Govardhan)

तभी राधा रानी ने उनसे कहा की आपने गौ हत्या की है आपको पापो से मुक्ति के लिए तीर्थ यात्रा करनी होगी। तब कृष्ण ने अपने बंसी से एक कुंड का निर्माण किया और सभी तीर्थो से प्राथना की सब के जल इस कुंड में सम्मोहित हो जाये। तब भगवान श्री कृष्ण के इस कुंड में स्नान कर अपने गौ हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त की थी इस जो भी मनुष्य इस कुंड में स्नान करता उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। 

कुशम सरोवर गोवर्धन (Kusum Sarovar Govardhan)

श्री गिर्राज महारज की परिक्रमा के बड़े मार्ग में स्थित कुशुम सरोवर यहाँ  श्री कृष्ण और राधा रानी की बड़ी  खूबसूरत लीलाये हुयी थे। 

कुशुम सरोवर राधा कुंड से 2 की,मि  और गोवर्धन से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह पांच हजार वर्ष पुरानी जगह है इस जगह के बारे पौराणिक कथाओ में काफी वर्णन मिलता है ।

द्वापर युग का ये वो पवित्र स्थान है जहाँ कृष्ण और राधा रानी का छुप -छुप कर मिला करते थे।  इस सरोवर के चारों तरफ फूलों का बाग़ था राधा रानी यहाँ बरसाने से  फूल लेने आती तभी कन्हैयाँ भी यहाँ राधा रानी से मिलने के लिए आए  थे।  पौराणिक कथाओ के अनुसार इस जगह का नाम कुशुम वन हुआ करता था । इस लिए इस स्थान को कुशुम सरोवर के नाम से जाना जाता है। 

कुशुम सरोवर के चारों और बड़ी सुन्दर छत्रिया मौजूद है जो आज से लगभग 350 बर्ष पुरानी है इनका निर्माण राजा ज्वार सिंह के द्वारा 1675 में करवाया गया था। आज भी यह कुंड स्वछ और साफ़ सुथरा है। 

 सुरभी कुंड गोवर्धन (Surbhi Kund Govardhan)

परिक्रमा मार्ग में स्थित सुरभि कुंड इस स्थान पर एक दिव्य गाय सुरभि जो इंद्र के अभिषेक के लिए आयी थी। एक लिए इस स्थान को सुरभी कुंड के नाम से जाना जाता है। 

राधा कुंड गोवर्धन (Radha Kund Govardhan)

राधा कुंड गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में स्थित राधा कुंड का निर्माण राधा रानी ने अपनी सखियों के लिए अपने कंगन से किया था। जो भी मनुष्य अहोईअष्टमी के दिन स्नान करता है उस मनुष्य को राधा रानी प्रेम प्राप्त होता है। क्योंकि यह कुंड कन्हैयाँ प्रेम के लिए लालयित रहता है। इसी के साथ में आपको श्री कृष्ण कुंड के भी दर्शन प्राप्त होते है । 

पूंछरी का लोटा गोवर्धन  (Puchhari ka Lautha Govardhan)

गोवर्धन परिक्रमा मार्ग राजिस्थान पुछरी ग्राम स्थित पुछरी का लोठा मंदिर इसकी कहानी इस प्रकार है।  जब  भगवान कृष्ण ब्रज  छोड़ के द्वारिका जा रहे थे तभी उनका एक सखा उनके रास्ते में बैठ गया तभी भगवान उन्हें असुवासन दिया की में 2 बाद लोट आऊंगा वही सखा आज भी पुछरी म बैठ हुआ भगवान के लौटने के इंतजार में बैठा हुआ है। जो आपकी परिक्रमा की पुस्टि करते है उनकी परिक्रमा करना बहुत जरूरी होता है। 

इंद्र कुंड गोवर्धन  (Indra Kund Govardhan)

गोवर्धन परकर्मा मार्ग में स्थित इंद्र कुंड जतीपुरा में स्थित है यह स्वेम इंद्र ने खड़े होकर श्री कृष्ण का अभिसेक किया था यहाँ से सिद्धा हम गोवर्धन की परिक्रमा को पूरा कर लेते है।

गोवर्धन परिक्रमा 21 किलोमीटर समाप्त होती है 

गोवर्धन परिक्रमा के नियम : (Rules for Govardhan Parikrama)

गोवर्धन परिक्रमा आप गोवर्धन के किसी भी स्थान से प्रारम्भ कर सकते है लेकिन याद रहे आप जिस स्थान से गोवर्धन परिक्रमा प्रारम्भ करते है उसी स्थान पर आपकी परिक्रमा समाप्त होगी। गोवर्धन परिक्रमा प्रारम्भ करने  पहले से आपको परिक्रमा के नियमों का जान लेना अतिआवशयक है। परिक्रमा प्रारम्भ करने से पहले गिर्राज पर्वत प्रणाम करना करे ताकि आपके मन से प्रारम्भ हो। परिक्रमा करने के पश्चात मानसी गंगा में स्नान अवश्य करे इसे आपको सभी धार्मिक स्थानों में स्नान करने का फल प्राप्त हो साथ ही धियान रखे की आपकी परिक्रमा अधूरी न रहे। 

और हाँ हो सके तो लगतार नियमित 7  गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Parikrama) अवश्य करें धन्यबाद

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