पुत्रदा एकादशी २०२२ : Putrada Ekadashi 2022
श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी ऐसा माना जाता है हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व होता है जिनमे श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी पुत्र प्रदान करने वाली एकादशी के नाम जाता है। जो नि:संतान दंपति पुत्रदा एकादशी का व्रत करते है उन्हें अवश्य पुत्र की प्राप्ति होती है। जरूरी नहीं की पुत्रदा एकादशी का व्रत सिर्फ नि:संतान ही करे सभी को करना चाहिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्रति होती है।
पुत्रदा एकादशी उद्देश्य : Putrada Ekadashi Mean
एक मनुष्य के जीवन में पुत्र की बहुत बड़ी भूमिका होती है। माता पिता मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार पुत्र ही करता है मृत्यु के बाद पुत्र के द्वारा किये गए संस्कार से उनकी आत्मा को मुक्ति प्राप्त होती है। तथा जिस मनुष्य की संतान नहीं होती वह हमेशा इसी बात से परेशान रहता है। इस लिए पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का करना चहिय। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा : Putrada Ekadashi Vrat Katha
श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़े ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन राजा की कोई भी संतान नहीं थी । राजा के चाहने वालों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक दुराचारी , धनहीन वैश्य जाति के थे। पुत्रदा एकादशी के दिन दोपहर के समय में वे प्यास से व्याकुल होकर एक तलाव पर पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उस को पानी पीने न दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के विरुद्ध था। अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे इस जन्म में राजा तो बने, किंतु उस एक पाप के कारण नि:संतान हैं। महामुनि ने बताया कि राजा के सभी चाहने वाले यदि श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। इस प्रकार मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।
व्रत विधि
- सूर्य उदय होने से पहले स्नान आदि निवृत होकर स्वछ वस्त्र धारण करे
- श्री हरि विष्णु के दर्शन करे और दीपक जलाये
- श्रावण मास स्वछ फल अर्पित करे
- व्रत धारण करने के बाद निराहार रहे एक समय फलहार करे तथा व्रत का पारण दूसरे दिन सूर्य उदय के बाद श्री हरि विष्णु भगवान को भोग अर्पित करे ततपश्चात व्रत पारित करे
एकादशी की उपवास रखने वालों को एकादशी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल चावल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
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