उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित वृंदावन देव नगर के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा स्थली वृंदावन का प्र्तेक स्थान श्री कृष्ण की याद दिलाता है यहां की कंढ कंढ में भगवान श्री कृष्ण बसते है। वृंदावन की परिक्रमा करने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान् आपके साथ खेल कूद कर रहे हों। भक्त भगवान के साथ क्रीड़ा करते हुए वृंदावन की परिक्रमा करने देश से ही नहीं विदेशों से भी भक्त वृंदावन की परिक्रमा करने के लिए आते है। वृंदावन की परिक्रमा का अपना महत्व है। वृंदावन की परिक्रमा पहले उनके अनन्य भक्त श्री हरिदास जी महाराज किया करते थे। श्री हरिदास जी महारजा दिन में निधि वन में रहा करते थे और रात्रि को परिक्रमा किया करते थे। वृंदावन की परिक्रमा के बारे में जानने से पहले आपको यह बात अवश्य जान लेनी चाहिए भारतीय संस्कृति समय-समय पर हमें अध्यात्म से जोड़ने की बात करती है। अध्यात्म हमारे मन को पवित्र करता है और हमें जीवन में हर कठिनाई से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है ताकि हम अपने जीवन को प्रेम से जी सकें। वृंदावन परिक्रमा भक्त और भगवान से जुड़ी हुई परिक्रमा है। सनातन धर्म में सभी को वृंदावन की परिक्रमा के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ठाकुर जी के वृंदावन के बारे म बता सके। वृंदावन के पवित्र स्थानों की परिक्रमा करना श्रद्धालुओं का वृन्दावन आना और परिक्रमा करना है । वृंदावन की परिक्रमा करने के लिए तीन घंटे का समय लगता है ।
वृन्दावन की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है-
वृंदावन परिक्रमा मार्ग 10 किमी (3 कोस और 1 किलोमीटर ) लम्बा है। रास्ते में आने वाले कुछ स्थानों कालिया घाट, मदन मोहन मन्दिर, इमली तला, श्रृंगार वट, और केशी घाट,यमुना जी के किनारे, फिर केशी घाट से धीर समीर, टटिया स्थान आदि स्थानों दर्शन प्राप्त होंगे। परिक्रमा करें इन स्थानों पर अवश्य जाएँ एवं दर्शन करें।
वृंदावन परिक्रमा क्या है ?
वृंदावन की परिक्रमा को पंचकोसी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है। वृंदावन की परिक्रमा भक्तों के लिए वर्दान है जिसमे बिहारी जी का प्रेम और राधा रानी का दुलार दोनों ही शामिल है। पूरा वृन्दावन भगवान् श्री कृष्णा और श्री राधा कृष्ण की दिव्य प्रेम और उनकी की बाल लीलाओ से भरा हुआ है। वृंदावन में गोपियों और ग्वाल वाल के साथ भगवान् श्री कृष्णा ने बचपन में क्रीड़ा ( बाल लीलाएं ) की थी वृनदावन के मंदिर भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं के प्रतीक है । वृन्दावन के किसी भी प्रसिद्द स्थान से परिक्रमा शुरू करे और वृन्दावन श्री कृष्णा की लीला और दर्शनीय स्थानों के मार्ग पे चलकर वापस उसी स्थान पे आ जाता है। यही पंचकोसी परिक्रमा है। इसे युगल सरकार या साक्षात् राधा कृष्ण की परिक्रमा कहते है।
”वृन्दावन सो वन नहीं, नंदगांव सो गांव! बंशीवट सो वट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम”
वृंदावन परिक्रमा मार्ग:-
वृंदावन परिक्रमा बिहारी जी मंदिर या कालिया घाट से शुरू कर सकते है। अगर आपको परिक्रमा शुरू करने सही स्थान समझ नहीं आये तो आप वृन्दावन के किसी संत या वहां के किसी निवासी से जान सकते है । वृंदावन में सभी संत आपको बहुत ही सरल स्वभाव के मिलेंगे । यमुना जी के तट पर मदन टेर, कालिया घाट, मदना मोहना मंदिर, इमली ताला, श्रृंगार वट, और केशी घाट, यमुना महारानी, फिर केशी घाट से टटिया स्थान आदि। वृंदावन की परिक्रमा करें लेकिन याद रहे परिक्रमा जिस स्थान से परिक्रमा शुरू करें उसी स्थान पर समाप्त करें। परिक्रमा करने के भी कुछ नियम है उनका भी पालन करते रहें। नियम निचे दिए गए है।
वृंदावन की परिक्रमा में आपको महत्वपूर्ण मंदिर, घाट,और वन परिक्रमा मार्ग में देखने को मिलेंगे।
कृष्ण बलराम मंदिर
गौतम ऋषि का आश्रम
वराह घाट
मोहना टेर
कालिया घाट
मदन मोहन मंदिर
इमली ताल
श्रृंगारा वट
केशी घाट
टेकरी रानी मंदिर
परिक्रमा के समाप्त होने पर ,यमुना जी के तट पर दीपक जलाए जाते है और दीपक प्रार्थना की जाती है।
परिक्रमा के नियम:-
वृंदावन की परिक्रमा करते समय हर एक पग श्री कृष्ण को श्री राधे नाम जाप करते हुए करनी चाहिए।
अगर आप कर सकते तो परिक्रमा नंगे पांव करें।
राधे राधे नाम का जितना हो सके उच्चारण करे।
परिक्रमा करते समय खाना नहीं खाना चाहिए
वृंदावन परिक्रमा के लाभ क्या है ?
राधे -कृष्ण के चरणों की भक्ति प्राप्त होती है। वृन्दावन की परिक्रमा करने से जो भी आपकी मनो कामना है वो पूर्ण होती है।
श्री लाड़ली एवं श्री कृष्ण का अनन्य प्रेम की प्राप्ति होती है।
वृंदावन की परिक्रमा अवश्य करें और बिहारी जी के दर्शन अवश्य करें
भविष्य पुराण में वृंदावन की परिक्रमा को पांच कोस की बताया गया है। वृंदावन की परिक्रमा साढ़े 3 कोस की है। यह परिक्रमा नंगे पांव करना जरूरी है। नंगे पैर परिक्रमा करने से आपको इसका फल प्रेम रूप में प्राप्त होता है।
वृंदावन रात्रि रस:-
दुनिया का एक मात्र स्थान वृंदावन ऐसा स्थान है जहां दिन में ही नहीं बल्कि रात्रि में कृष्ण रस राधा रस प्राप्त होता है। हमारे द्वारा कुछ तस्वीरें ली गई है। इनसे आप पता लगा सकते है। वृंदावन में रात्रि के समय मंदिरों की लाइट एवं भजन कीर्तन आदि चलते ही रहते है। वृंदावन का वास हर किसी मनुष्य के लिए असम्भव है जब तक हरी दास दुलारी श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण की कृपा नहीं होती तव तक वृंदावन में कोई नहीं आ सकता है। वृंदावन की परिक्रमा का सौभग्य प्रात करें और श्री लाड़ली जू, राधा रानी जी के अनन्य प्रेम का आनंद ले।
”मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोई।। जा तन की झांई परै, श्याम हरित-दुति होय”
अर्थात- श्री राधा के पीले रंग की परछाईं ( छांया ) भगवान श्री कृष्ण पर पड़ती है, भगवान श्री कृष्ण काले पड़ जाते है। यह भगवान श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी के अनन्य प्रेम को दर्शाता है। ऐसी प्रकार वृंदावन में रात्रि रस यानि मंदिरों में दिन रात रस बरसता है।
आशा करता हूँ मेरे द्वारा दी गई जानकरी समझ आयी होगी ,धन्यबाद
Read more About- मथुरा का इतिहास , निधिवन का रहस्य , बरसाना की परिक्रमा का क्या विशेष महत्व है, गोवर्धन परिक्रमा के महत्व