श्री कृष्ण को हम ब्रज वाले प्रेम से कान्हा कहते है। इसी लिए एक लाइन मेरी तरफ से हमारे प्यारे कान्हा के लिए , की जब सुकून ना मिले दिखावे की बस्ती में, तब खो जाना मेरे श्याम की मस्ती में। बोलो राधे राधे प्यारी का नाम लेने मात्र से ही उनका अटूट प्रेम आपको प्राप्त हो जाता है। आप उनके प्रेम के बारे में जानने वाले तो राधे नाम का उच्चारण करते रहिये आपको उनके दर्शनो जैसा सुख प्राप्त होगा। इसी के साथ हम आपको हमरी ब्रज लाड़ली श्री राधा रानी और कान्हा ( श्री कृष्ण ) के प्रेम के बारे में बताते है। भक्तो श्री कृष्ण और प्यारी राधा रानी के प्रेम के वारे में पूरा संसार जानता है। आखिर क्यों है राधा रानी और श्री कृष्ण का प्रेम इतना लोकप्रिय। एक समय की बात है, जब कान्हा अपने सखाओं के साथ मिलकर मांखन की चोरी किया करते थे। कान्हा के माखन चोरी करने के बारे में पूरा ब्रज जानता था लेकिन उनकी प्राण प्रिय श्री राधा रानी इस बात से अनजान थी। भक्तो जब राधा रानी ( किशोरी ) जी को यह पता चला कि कृष्ण ( कान्हा ) ही गोकल में माखन चोरी करते या माखन चोर कहलाता है तो किशोरी जी को बहुत बुरा लगा तभी श्री राधा रानी ने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का आग्रह किया। लेकिन
कान्हा कहां मानने वाले थे। लेकिन किशोरी जी के कहने से श्री कृष्ण ने माखन की चोरी नहीं छोड़ी। कान्हा जब यशोदा मइया ( माँ ) की नहीं मानते है तो अपनी प्रियतमा श्री राधे की कहा से मानते। कान्हा ने अपने सखाओं के साथ माखन चोरी की लीला को जारी रखा। यह देख कर की कान्हा (श्री कृष्ण) ने उनकी माखन चोरी की बात नहीं मानी तभी किशोरी जी कान्हा से नाराज ( रूठ ) हो जाती है।
श्री कृष्ण जाते है अपनी प्राण प्रिय राधे को मनाने बरसाने –
जब एक दिन किशोरी जी ने कान्हा ( श्री कृष्ण ) को सबक सिखाने के लिए कान्हा से रूठ जाती । अनेक दिन बीत जाते है पर किशोरी जी कृष्ण से मिलने नहीं आई। और जब श्री कृष्णा ( कान्हा ) प्रिय किशोरी जी को मनाने गए तो किशोरी जी बात करने से इनकार कर देती है । तभी कान्हा ( श्री कृष्ण ) किशोरी जी ( राधा ) को मनाने के लिए लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री जिसे आज समय में टेंटु ( Tattoo ) बनवाना बोलते है को लालिहारण कहा कहते है । कान्हा ( श्री कृष्ण) घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में आ जाते है और पुकार करते हुए
बरसाने में घूमने लगे। जब कान्हा बरसाने, राधा रानी ( किशोरी ) की ऊंची अटरिया के नीचे आये और जोर जोर से आवाज़ लगाने लगते है ।
“दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी, दीदार की प्यासी, दर्शन को वृषभानु दुलारी।
हाथ जोड़ विनंती करूँ, अर्ज मान लो हमारी,आपकी गलिन गुहार करूँ, लील्या ( Tattoo ) गुदवा लो प्यारी।”
जब किशोरी जी को यह आवाज सुनाई देती है तभी तुरंत किशोरी जी ने अपनी प्रिय सखी विशाखा को भेजा लालिहारण को बुलाने के लिऐ । तभी कान्हा ( श्री कृष्ण ) घूंघट में अपने मुँह को छिपाते हुए किशोरी जी के सामने पहुंचे और किशोरी जी का हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकमारी आपके हाथ पे किसका नाम लिख दूँ । किशोरी जी ने उत्तर देते हुए कहा कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी ( लाड़ली ) बताने लगी। क़्यों की श्री राधे को कृष्ण से मिले अब काफी हो चुके थे , कहीं कोई कहे छोड़ो, ना सताओ मोरे कान्हा ,मन ही मन प्रीत करे, सब तुझसे सुन कान्हा किशोरी जी प्रेम से बोली हे लालिहारण , में जैसा बोलती हूँ ऐसा कर दे क्या पता कान्हा यह सब देख कर मान जाए और सायद माखन की चोरी छोड़ दे तो में जैसा बोलती हूँ ऐसा कर दे –
“माथे पे मोहन, पलकों पर पीताम्बर धारी नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी
छाती पर छलिया, और कमर पे कान्हा जंघ पे जनार्दन, उदर पर ऊखल बंधैया
गुदाओं पे ग्वाल, नाभि पर नाग नथैया बाहों पर लिख दे बनवारी, हथेली पर हलधर के भैया
नैनो में गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी और रोम रोम में लिख दे मेरे, मेरो रसिया रास बिहारी”
यह पढ़ने के में यकीन से कहे सकता हूँ की अगर आपको कभी जाने अनजाने में प्रेम की प्राप्ति हुई होगी तो आपने ऐसा ही महसूस किया होगा जैसा की राधा रानी का श्री कृष्ण से मिले इतना समय निकल जाता हे तो किशोरी अपने प्रेम को कुछ इस तरह से प्रकट करती है की लाड़ली भूल जाती प्रेम ने उन्हें आने वाले समय म कितना कस्ट होने वाला है। अगर लाड़ली ऐसा जानती प्रीत करे दुःख होय तो नगर डिंडोरी पीटती प्रीत न करियो कोय बोलो राधे राधे यही तो प्रेम है भक्तो इसमें इंसान यह भी भूल जाता है उसका आने वाला समय केसा होगा उसे सिफ्र याद होता हो बस अपना प्रेमी , तभी तो किशोरी जी को अपने प्रेमी के वारे में वो सब गुदवाने वाली है जो उनका प्रेमी यानि श्री कृष्ण ( कैसे दीखते है , क्या पहनते है , कैसे लगते है , यही तो प्रेम है बाकि सब फ्रेम है , जब कान्हा ( श्री कृष्ण ) जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पर मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो कान्हा ख़ुशी से पागल हो गए ( बौराए ) कान्हा की अपनी सुध न रही, वो यह भूल जाते है कि वो एक लालिहारण के वेश में लाड़ली ( राधा रानी ) के सामने बैठे हैं। कान्हा खड़े होकर जोर जोर से नाचने लग जाते है । लालिहारण के व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ और सोचने लगी इस लालिहारण को क्या हो गया। और उसी समय कान्हा घूंघट गिर जाता और किशोरी जी प्रिय सखी ललिता को कान्हा की सांवरी सूरत का दर्शन हो जाता और ललिता जोर से बोल उठी और बोलती है कि अरे….. ये तो कान्हा है, श्री बांके बिहारी है, श्री कृष्ण हे और बोलती ये तो माखन चोर है। कशोरी जी को अपने प्रेम के इज़हार पर बहुत लज्जित हो जाती और अब किशोरी जी के पास कन्हैया, कान्हा, कृष्ण गोपाल को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। कान्हा भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकर गदगद् और भाव विभोर हो जाते हे। कितने सुंदर नैन तेरे ओ राधा प्यारी, इन नैनों में खो गये मेरे बांकेबिहारी। और किशोरी जी कान्हा को क्षमा कर देती तभी कान्हा किशोरी जी माखन चोरी करने के पीछे का राज बताते हे की क्यों करते थे कान्हा माखन की चोरी , यहां सिर्फ इतना ही माखन लीला आपको अगले ब्लॉग में मिलेगा राधे राधे।
भक्तो यह था श्री राधा रानी ( यानि हमारी किशोरी जी ) और श्री कृष्ण का अटूट प्रेम
“मोहिं तो भरोसो है तिहारो री किशोरी राधे, हौं जस अधम तुमहिँ इक जानति, और न जाननि हारो री किशोरी राधे”
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