पौराणिक कथाओं के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड में वैवाहिक दंपत्ति द्वारा स्नान करने की पंरपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान राधा कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि राधा कुंड न केवल देश में से बल्कि विदेशों से भी लोग राधा कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं। परंतु ऐसा करने के पीछे क्या कारण है की लोग यहां स्नान करने आते है, इस रहस्य के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। राधा कुंड का महत्व क्या है , किसने बनाया था, क्यों करते राधा कुंड में स्नान, आप भी जानना चाहते हैं तो नीचे दी गई जानकारी को ध्यान से पढ़िए-
राधा कुंड का महत्व
सनातन धर्म की कथाओ के अनुसार मथुरा नगरी से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा में राधा कुंड स्थित है जो गोवर्धन परिक्रमा करते समय गोवर्धन परिक्रमा का प्रमुख पड़ाव है । कथाओं के अनुसार बचपन में अपने अपने सखाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन में गाय चराया करते थे। इस दौरान एक दिन अरिष्टासुर नामक एक दैत्य ने गाय के बछड़े का रूप धारण कर भगवान श्रीकृष्ण पर हमला करना चाहा, लेकिन भगवन श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। क्योंकि राधा कुंड क्षेत्र श्रीकृष्ण से पूर्व दैत्य अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन हुआ करती थी। अरिष्टासुर से ब्रजवासी बहुत परेशान थे। श्री कृष्ण ने यह देखा दैत्य से ब्रज वासी परेशान है इसी के चलते श्रीकृष्ण ने उसका वध किया था।
जब भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी को उस दैत्य के वध की बात बताई तो राधा जी ने उन्हें कहा की आपने असुर का वध गौवंश के रूप में किया है, इसलिए आप पर गौवंश हत्या का दोष लगेगा। राधा जी की यह बात सुनते ही भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया जिसे आज के समय में कृष्ण कुंड के नाम से जाना जाता है । यह देखते हुए श्री राधा रानी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड बनाया और उसमें स्नान किया जिसे आज के समय में राधा कुंड के नाम से जाना जाता ।
राधा कुंड की महिमा :
भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के द्वारा बनाये गए कुंड राधा कुंड एवं कृष्ण कुंड इन दोनों में राधा रानी श्री कृष्ण कुंड बनाने के बाद कुंड में स्न्नान किया और अष्ट सखियों के सात रास किया तभी राधा जी बोलती है की इन दोनों कुंडों की अपनी अपनी महिमा होगी क्योंकि यह दोनों कुंड कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले अहोई अष्टमी के दिन बनाये गए थे इसलिए राधा कुंड में अगर कोई निसंतान दंपत्ति सच्चे मन से श्री रानी रानी की पूजा करके कुंड में स्नान करता है तो राधा रानी उस दंपति की झोली को संतान से भर देती हैं। अहोई अष्टमी दिन संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति निर्जला व्रत रखना चाहिए। ताकि राधा रानी कृपा हमेशा बनी रहे।
राधा कुंड में स्नान करने का सही समय :
राधा कुंड की मान्यता है कि सप्तमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान करते हैं। और स्नान करते समय राधा रानी की आराधना करते है। इसके बाद सुहागिनें ( शादीशुदा ) अपने केश ( बाल ) खोलकर श्री राधा रानी की भक्ति कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर। पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए राधा रानी से प्रार्थना करती हैं। कार्तिक मास की अष्टमी को वे पति-पत्नी स्नान करे जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई है, और निर्जला व्रत रखते रहे। ऐसा करने से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो जाती है।
राधा कुंड किसने बनाया:
श्री राधा रानी के द्वारा उनके कंग्गन से बनाया गया था जैसा की मैं पहले बता चूका हूँ की भगवान श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर नामक एक दैत्य के वध करने के दौरान बनाया गया था। ऐसा करने से श्री कृष्ण को गोवंश के पाप से मुक्ति मिल जाती है और उसी समय श्री राधा रानी अपने कंगन से राधा कुंड बनाती है। व्रज वाशी उस दैत्य से बहुत परेशान थे उन्हें दैत्य से मुक्ति मिल जाती है। यहां कार्तिक मास की अष्टमी को मेले का आयोजन भी किया जाता है। तथा निसंतान दंपत्ति यहां आकर पूजा अर्चना कर स्नान कर संतान प्राप्त करे। राधा कुंड में स्नान करने से उस निसंतान दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां जल्द ही गूंज उठती है। और जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। तथा वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ राधा रानी की शरण में हाजरी लगाने आते हैं और इस कुंड में स्नान करते हैं।
नोट : राधा कुंड श्री राधा रानी के द्वारा बनाया गया है। ऐसा माना जाता है यहां आज भी श्री कृष्ण और राधा रानी स्नान करने आते है और अपनी अष्ट सखियों के साथ रास करते है ,बोलो राधे राधे
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