बांके बिहारी मंदिर वृंदावन समय (Banke Bihari Vrindavan Temple Updated Timings )
बांके बिहारी मंदिर वृंदावन ग्रीष्मकालीन समय ( Banke Bihari Vrindavan Temple Summer Timings )
दिन (Day) | सुबह का समय (Morning Time ) | शाम का समय (Evening Time ) |
सोमवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
मंगलवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
बुधवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
गुरुवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
शुक्रवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
शनिवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
रविवार | सुबह 7:45AM – दोपहर 12:00 PM | 5:30 pm – 9:30 pm |
बांके बिहारी मंदिर वृंदावन शीतकालीन समय ( Vrindavan Banke Bihari Temple Winter Timings )
दिन (Day) | सुबह का समय (Morning Time ) | शाम का समय (Evening Time ) |
सोमवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
मंगलवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
बुधवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
गुरुवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
शुक्रवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
शनिवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
रविवार | सुबह 8:45AM – दोपहर 1:00 PM | 4:30 pm – 8:30 pm |
बांके बिहारी मंदिर वृंदावन दर्शन और आरती समय सुबह और शाम ( Banke Bihari Temple Vrindavan Darshan & Aarti Timings Morning & Evening )
आरती | गर्मी होली के बाद Summer (after Holi) | सर्दी दीवाली के बाद Winter (after Diwali) |
दर्शन का समय सुबह ( Darshan Time in Morning ) | सुबह 07:45 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक | सुबह 08:45 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक |
श्रृंगार आरती ( Shringar Aarti ) | सुबह 08:00 | सुबह 09:00 |
राजभोग ( Rajbhog ) | 11:00 बजे से 11:30 AM | 12:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक |
राजभोग एवं समापन ( Rajbhog and Closing ) | 12:00 PM | 1:00 PM |
दर्शन का समय शाम (Darshan time in Evening ) | शाम 05:30 बजे से 09:30 बजे | शाम 04:30 बजे से 08:30 बजे तक |
शयन भोग ( Shayan Bhog ) | शाम 08:30 बजे से 9:00 बजे तक | शाम 07:30 बजे से 8:00 बजे तक |
शयन आरती और समापन ( Shayan Aarti and Closing ) | 9:30 PM | 8:30 PM |
बाँके बिहारी मंदिर ( Banke Bihari Temple ) यूपी मथुरा के वृंदावन में स्थित है. वृंदावन में बहुत मंदिर है जिनमे से ( Vrindavan Banke Bihari Temple ) वृंदावन का बाँके बिहारी मंदिर विश्व में प्रसिद्ध है। ( Vrindavan Temple ) वृंदावन के मंदिरों में भक्तों की गहरी आस्था है. यहां जो भी भक्त बिहारी जी के दर्शन एवं पूजा करता है उसके जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि बांके बिहारी मंदिर भारत के सभी मंदिरों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और सर्व श्रेष्ठ एवं मनोकानओं को पूरा करने वाला बाँके जी का मंदिर है, वेद और शास्त्रों के अनुसान वृंदावन को देव भूमि माना जाता है। क्योकि भारत में सबसे अधिक श्रद्धालु वृंदावन भूमि आते है। ऐसा नहीं है की श्रद्धालु भारत के ही अर्थात पूर्ण विश्व से श्रद्धालु यहां आते है। इस लिए वृंदावन के नाम से भी जाना जाता है। वृंदावन की प्रत्येक (तमाम )गलियों में भगवान श्री कृष्ण ने बाल लीलाएं की थीं । भक्तों के अनुसार ऐसा माना जाता है की जो भी मनुष्य 11 दिन तक (लगातार ) वृंदावन बिहारी जी मंदिर के बाल गोपाल को माखन मिश्री का भोग कराता है, ऐसा प्रति 11 दिन तक करने मनुष्य की आर्थिक समस्या एवं जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है साथ ही जीवन सुखमय ( happiness ) हो जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं बांके बिहारी मंदिर के महत्व के बारे में एवं बांके नाम कैसे पड़ा बिहारी जी का –
कैसे पड़ा बिहारी जी का नाम बांके एवं बाँके बिहारी मंदिर :-
कैसे पड़ा बिहारी जी का नाम बांके:- भक्तों आप तो सभी जानते है की भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजाया करते थे। क्योंकि बांके का अर्थ होता है तीन कोणों ( तिरछा ) पर मुड़ा हुआ होता है, जैसा की वास्तव में बांसुरी बजाते समय भगवान श्री कृष्ण त्रिकोणी ( triangular ) अवस्था में ही बांसुरी बजाया करते थे एक मुद्रा में. हमेशा बांसुरी बजाते समय भगवान श्री कृष्ण का दाहिना घुटना बाएं घुटने के पास मुड़ा ही रहता था, जैसा की चित्र शैली एवं पौराणिक कथाओं से हमने जाना, तो सीधे हाथ में बांसुरी को थामने के लिए मुड़ा रहता था. इसी प्रकार भगवान् श्री कृष्ण का सिर ( head ) भी इसी दौरान एक तरफ हल्का सा झुक जाता था. बाँके बिहारी मंदिर वृंदावन का निर्माण सन 1860 में कराया गया था। बांके बिहारी जी की बांसुरी बजाते हुए मुद्रा की इस छवि को भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त स्वामी हरिदास जी ने निधि वन में खोजा था। स्वामी हरिदास जी तानसेन के गुरु थे. मान्यता है कि भगवान श्री बांके बिहारी निधिवन की लता पताओं से प्रकट हुए थे. जैसा की में निधिवन के ब्लॉग में पहले ही जानकारी दे चूका हु की निधिवन में आज भी भगवान श्री कृष्ण और राधा रास लीला करने आज भी आते हैं. बाँके बिहारी मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार बाँके बिहारी जी की इस प्रतिमा में साक्षात् ( स्वेम ) श्री कृष्ण और राधा रानी समाए हुए हैं. बाँके बिहारी जी के दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल प्राप्त होता है। बिहारी जी के मंदिर में प्रत्येक वर्ष आने वाली मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को श्री बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी जी प्रकटोत्सव ( Manifesto ) मनाया जाता है. वैशाख माह ( Vaishakh month ) की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। पूरे एक साल में सिर्फ अक्षय तृतीया के दिन ही बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. अक्षय तृतीया के दिन भगवान के श्री चरणों के दर्शन बहुत शुभ कारी, फलदायी माने जाते है. अक्षय तृतीया के दिन वृंदावन मंदिर ( Vrindavan Temple ) में भक्तों की भीड़ लाखों, करोड़ों में होती है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण जानकरी ये है की बाँके बिहारी मंदिर में स्थित बिहारी जी की प्रतिमा ( मूर्ति ) को किसी ने नहीं बनाई थी। ऐसा माना जाता है कि बांके बिहारी जी की मूर्ति ( प्रतिमा ) को किसी ने बनाया नहीं है, यह प्रतिमा (मूर्ति ) स्वेम (अपने आप ) उत्पन्न हुई थी. माना जाता है श्री हरिदास जी की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर बांके बिहारी मंदिर वृंदावन के निधिवन में प्रकट हुए थे. बांके बिहारी जी की आधी प्रतिमा (मूर्ति ) पर महिला और आधी प्रतिमा ( मूर्ति ) पर पुरुष का श्रृंगार किया जाता है. बांके बिहारी जी के मंदिर में मंगला आरती साल ( year ) में केवल ( सिर्फ ) एक दिन जन्माष्टमी को ही की जाती है. जन्माष्टमी के दिन बांके बिहारी जी के दर्शन बहुत ही विशेष माने जाते हैं. बिहारी जी की पूजा में श्रृंगार विधिवत किया जाता है. बिहारी जी को भोग में माखन, मिश्री,केसर, चंदन एवं गुलाब जल चढ़ाया जाता है. अधिकतर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ प्र्तेक महीने में ( Month ) दो दिन होती है। एकादशी के दिन बिहारी जी दर्शन उचित मने जाते है।
भगवान श्री कृष्ण को कुंज-बिहारी क्यों कहा जाता है;-
कहा जाता हे,की भगवान श्री कृष्ण ज्यादा तर वनो में ही अपनी लीलाएं किया करते थे। बंशी बजाना या रास लीला करना अदि बनो में ही किया करते थे।
कुंज का अर्थ होता है – झाड़ियों, एवं लताओं आदि से घिरा हुआ स्थान, या गोलाकार स्थान।
बिहारी का क्याअर्थ होता है –
नित्य बिहार करने वाला ( प्रति दिन भर्मण करने वाला, घूमने वाला ) भगवान श्री कृष्ण वनो में नित्य बिहार करते थे ‘ भगवान श्री कृष्ण वृंदावन के कुंज या पेड़ों का आनंद लिया करते थे’ इसलिए भगवान् श्री कृष्ण को कुंज-बिहारी नाम से जाना जाता है । आशा करता हु आपको मेरे द्वारा दी गयी जानकारी अच्छी लगी होगी इसी के साथ एक बार बोलो श्री हरिदास , राधे राधे
Read more About- मथुरा का इतिहास, निधिवन का रहस्य, आशेश्वर महादेव नंदगाव, वृंदावन परिक्रमा पूरी जानकारी, बरसाना की परिक्रमा का क्या विशेष महत्व है, गोवर्धन परिक्रमा के जाने महत्व, बाँके बिहारी मंदिर वृंदावन का समय,महत्व